समझ नहीं आता कि ये अन्ना हजारे का करिश्मा है या फिर मीडिया के द्वारा रचा गया नाटक, कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी टी वी चैनलों पर ऐसा ही कुछ राग अलाप रहें है, बात दरअसल ये है कि बुदिजीवी (जिनके पास पैसा भी बहुत है) इस देश की जनता की ताकत देख कर बौखलाए से फिर रहे है। उन्हें ये समझ नहीं आरहा कि देश की जनता को ये अचानक क्या हो गया है, ये तो कुछ समझती ही नहीं थी, अचानक इतनी समझदार कैसे हो गयी कि सरकार के लोकपाल और जन लोकपाल का फर्क जानने लग गयी । वे कहते है कि कानून बनाना तो संसद का काम है और अन्ना हजारे कौन होते है सरकार को बताने वाले कि कैसा क़ानून बनना चाहिए । अरे भाई सरकारों ने अगर पिछले चौंसठ सालों में अपना काम ईमानदारी और देशभक्ति के साथ किया होता तो फिर आज ये नौबत ही क्यों आती। और इन बुद्धिजीवीओं को आम आदमी की तकलीफों का क्या पता, इनका हर काम तो घर बैठे ही होजाता है। इन्हें सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ें तो पता चले । सारे नेता, अफसर और ये बुद्धीजीवी एक ही कुनबे के जीव ही तो है। दिन भर इधर उधर भाषण देलिए, बतियालिये और शाम को प्राईम टाइम में किसी चैनल पर कुछ उगल दिया और बदले में कुछ हरे-हरे नोट जेब में दाल कर चल दिए ।
अगर सरकारी अफसरों और नेताओं के कारनामे, जिनसे वे अकूत दौलत बनाते हैं यहाँ लिखना शुरू करू तो सारा दिन लगाकर भी पूरा नहीं पड़ेगा। और फिर मैं यहाँ क्यों लिखूं , आपको छोड़ कर बाकी देश की जनता तो जान ही गयी है ना , आप जाने या ना जाने इससे फर्क भी क्या पड़ता है ।
देश में हो रहा आन्दोलन अन्ना के लिए नहीं है साहब , ये जनता का गुस्सा सरकार के खिलाफ है, कुछ समझे बुद्धीजीवी साहब। जरा बच के रहिएगा ।
श्रीकृष्ण वर्मा
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