आजादी के साठ सालों के बाद भी इस देश के आम आदमी (आम आदमी से मेरा मतलब नेताओं और दबंगों के
अलावा सभी) की जिन्दगी आज भी इतनी बेचारी, खीज भरी और बेबस है. घर से निकलते ही चाहे आर टी ओ
मे लाईसेंस बनवाना हो, प्राइवेट स्कूलों की फीस के लिए पैसों का जुगाड़ करना हो, एक अदद घर का नक्शा
पास करवाने के लिए जे ई की खुशामंद (वरना मोटी रिश्वत का इंतजाम करो) करनी हो, पुलिस थाने में कोई
कम्प्लेंट लिखवानी हो और अगर इन सबसे वक्त बचे तो अपने काम धंदे को देखे ताकि घर परिवार चलाने के
लिए दो पैसे कमा सके. मेरा मतलब ये नहीं है कि ये सब काम के लिए आकाश से उतर कर कोई आएगा
करना तो हमें ही है लेकिन इन सब के लिए रोजाना जो अपमान झेलने पड़ते है उन सबसे एक व्यक्ती की
आत्मा पर जो घाव लगते है उससे अहसास होता है कि क्या हम आजादी के साठ सालों बाद भी वास्तव में
आज़ाद हो सके है. और ये सब क्या कम था जो अब व्यक्ति की सुरक्षा भी रोजाना घर से निकलते ही दांव पर
लगी रहती है. कभी बेतरतीब ट्रैफिक में दुर्घटना, कभी आतंकवाद. कब कहाँ कौन आतंकवाद या दुर्घटना की
भेंट चढ़ जाए क्या पता. सुबह घर से निकल कर शाम को सही सलामत घर आजाये तो ठीक वरना...........
३. असल में तकलीफ तो तब होती है जब नेताओं और दबंगों या प्रभावशाली लोगों के काम घर बैठे ही
होजातें हैं और एक आम आदमी दर दर ठोकरें खाता फिरता है और फिर भी उसके काम नहीं होते,
अलावा सभी) की जिन्दगी आज भी इतनी बेचारी, खीज भरी और बेबस है. घर से निकलते ही चाहे आर टी ओ
मे लाईसेंस बनवाना हो, प्राइवेट स्कूलों की फीस के लिए पैसों का जुगाड़ करना हो, एक अदद घर का नक्शा
पास करवाने के लिए जे ई की खुशामंद (वरना मोटी रिश्वत का इंतजाम करो) करनी हो, पुलिस थाने में कोई
कम्प्लेंट लिखवानी हो और अगर इन सबसे वक्त बचे तो अपने काम धंदे को देखे ताकि घर परिवार चलाने के
लिए दो पैसे कमा सके. मेरा मतलब ये नहीं है कि ये सब काम के लिए आकाश से उतर कर कोई आएगा
करना तो हमें ही है लेकिन इन सब के लिए रोजाना जो अपमान झेलने पड़ते है उन सबसे एक व्यक्ती की
आत्मा पर जो घाव लगते है उससे अहसास होता है कि क्या हम आजादी के साठ सालों बाद भी वास्तव में
आज़ाद हो सके है. और ये सब क्या कम था जो अब व्यक्ति की सुरक्षा भी रोजाना घर से निकलते ही दांव पर
लगी रहती है. कभी बेतरतीब ट्रैफिक में दुर्घटना, कभी आतंकवाद. कब कहाँ कौन आतंकवाद या दुर्घटना की
भेंट चढ़ जाए क्या पता. सुबह घर से निकल कर शाम को सही सलामत घर आजाये तो ठीक वरना...........
३. असल में तकलीफ तो तब होती है जब नेताओं और दबंगों या प्रभावशाली लोगों के काम घर बैठे ही
होजातें हैं और एक आम आदमी दर दर ठोकरें खाता फिरता है और फिर भी उसके काम नहीं होते,