Wednesday, September 4, 2013

नरेंद्र मोदी !


कुछ नेताओं कि कारगुजारियों पर नज़र जरूर रखनी चाहिए क्योंकि ऐसे ही नेता बी जे पी के बहुमत प्राप्त करने की राह में एक बात तो है, कि जो लोग सोचते हैं कि नरेंद्र मोदी ही अगले प्रधान मंत्री होंगे, उन्हे बी जे पी के रोड़ा बन सकते हैं ।
 
उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के बी जे पी नेता कैलाश विजयवर्गीय, जो कि वर्तमान में प्रदेश कैबिनेट
 
 
में मंत्री भी हैं । अभी कुछ दिन पहले अंग्रेजी न्यूज़ चैनल "टाइम्स नाव" पर जिस बदतमीजी और
 
हठीलेपन से अपनी अज्ञानता और मूढ़ता का परिचय दे रहे थे और बीच बहस में ही अपना माइक 
 
 
उतार कर भाग गए, उससे आनेवाले चुनावों में बी जे पी का वे सिर्फ और सिर्फ भारी नुकसान ही
 
करेंगे । और अगले ही दिन उसी न्यूज़ चैनल पर बी जे पी के ही मध्य प्रदेश यूथ विंग के
 
नवोदित नेता (उनका नाम याद नहीं है) अपनी नालायकी और अज्ञानता का बड़ी ही निर्लज्जता से
 
प्रदर्शन कर रहे थे। निश्चित रूप से देश कि जनता ये सब देख रही है, क्या बी जे पी के कर्णधार भी
 
इसे देख रहे हैं।  नरेंद्र मोदी जी से अनुरोध है कि वो समय रहते खेत को नुकसान पहुंचाने वाली इस
 
बाड़ को हटाएँ या फिर उन्हे दूर रखें ।  एक बात तो सौ प्रतिशत निश्चित है कि यदि बी जे पी को
 
बहुमत न मिला तो सहयोगी पार्टियां मोदी जी को कभी भी देश हित कि निर्णय नहीं लेने देंगी,
 
क्योंकि देश हित के निर्णय हमेशा नेताओं के हितों से टकराते हैं और टकराते रहेंगे, यह बात मन
 
मोहन (सिंह) की हालत देख कर समझी जा सकती है ।

डालर - डालर बस डालर !


उन सभी के लिए जो भारतीय रुपये के अवमूल्यन से चिंतित हैं।

 

देश के सभी कर मालिक (धारक) सात दिनों के लिए जी हाँ केवल सात दिनों के लिए अति आवश्यक परिस्थितियों को छोड़ कर कर का इस्तेमाल न करें । ऐसा करने से निश्चित रूप से डालर के मुकाबले रुपये का मूल्य बढ़ेगा, यह बिल्कुल सत्य है ।  कच्चे तेल से ही डालर की कीमत निर्धारित होती है ।  इसे "वायदा कारोबार " भी कहते हैं । अमेरिका ने 70 बरस पहले अपने डालर की कीमत को सोने के बदले निर्धारित करना बंद कर दिया था ।

अमेरिका ने भलीभाँति यह समझ लिया था कि तेल भी सोने के समान ही मूल्यवान है और भविष्य में तेल का ही बोल बाला रहने वाला है । इसलिए उन्होने सभी मध्य पूर्व तेल उत्पादक देशों के साथ एक समझौता  किया कि वे तेल केवल डालर में ही बेचें । अतः अमेरिका अपने डालर को ऋण के लिए वैध मुद्रा  (legal tender for debts) के रूप में छापता है । इसका अर्थ यह हुआ कि यदि आप अमेरिकन डालर को पसंद नहीं करते और उनके गवर्नर से डालर के पुनर्भुगतान के लिए कहते हैं तो वे आपको डालर के बदले सोना नहीं देंगे । जबकि भारत को अपने रुपए के बदले उसकी कीमत के बराबर सोना देना पड़ता है ।   

 

आप भारतीय रुपए का अवलोकन करें "मैं धारक को  .....। रुपए देना का वचन देता हूँ"  ऐसा रुपए पर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर के साथ स्पष्ट रूप से छपा होता है । इसका अर्थ यह है कि अगर आप भारतीय रुपए को पसंद नहीं करते हैं और उसका पुनर्भुगतान चाहते हैं तो रिजर्व बैंक आपको उतने मूल्य का सोना देगा । (वास्तव में इस प्रकार के विनिमय लेन-देन में कुछ अंतर हो सकता है किन्तु इसको आसानी से समझने के लिए मैं इस प्रकार बता रहा हूँ)  

 

आइए इसको एक उदाहरण के द्वारा समझने का प्रयास करते हैं ।  भारत के पेट्रोलियम मंत्री मध्य पूर्व के देश में कच्चा तेल खरीदने जाते हैं, वहाँ के तेल व्यवसायी कहते हैं कि एक लीटर तेल की कीमत एक डालर है ।  लेकिन भारतीय मंत्री के पास तो डालर नहीं है, केवल रुपया है ।  वो अब क्या करें ?  अब भारतीय मंत्री अमेरिका से डालर देने के लिए कहेंगे ।  अमरीकी फेड रिजर्व डालर छाप कर भारतीय मंत्री को दे दे गा । इस प्रकार भारतीय मंत्री वो डालर तेल उत्पादकों को दे कर उनसे तेल खरीद लेंगे ।  लेकिन इस लेन - देन में एक बड़ी जालसाजी है ।  अगर आप अपना विचार बदल कर डालर अमेरिका को वापस करते हैं तो हम अमेरिकी फेड रिजर्व से डालर के बराबर मूल्य सोने की मांग नहीं कर सकते, वो हम से कहेंगे, "क्या हमने आप से डालर के बदले कुछ देने का वादा किया था ? क्या आपने डालर की जांच की है ? हमने डालर पर साफ -साफ लिखा है की यह एक ऋण के लिए एक 'विधि मान्य मुद्रा है' । " इस प्रकार अमेरिका को डालर छापने के लिए उतने मूल्य का सोना अपने पास रखने की कोई जरूरत नहीं है ।  अमेरिका जितने  चाहे डालर छाप सकता है । लेकिन मध्य-पूर्व देशों को केवल डालर के बदले तेल बेचने के लिए अमेरिका उन्हे क्या देता है ?  अमेरिका मध्य-पूर्व के देशों के राजाओं और उनके वारिसों को सुरक्षा प्रदान करता है ।  ठीक इसी प्रकार ये देश अपने यहाँ सड़कें, भवन व मूलभूत सुविधाएँ बनाने के लिए अमेरिका को अभी तक उधारी चुका रहे हैं । यह है अमेरिकी डालर की ताकत ।  इसी वजह से लोग कहते हैं की एक दिन अमेरिकी डालर खुद ही बर्बाद हो जाएगा । 

 

वर्तमान में की समस्या अमेरिकी डालर खरीदने की वजह से है ।  क्योंकि डालर में भुगतान करने के लिए भारत में सोना होना चाहिए ।  इसीलिए 1991 में जब भारत में तेल का संकट उत्पन्न हुआ था तो भारत को अपना सोना गिरवी रखना  पड़ा था और आज की सरकार के मंत्री भी सोना गिरवी रखने की बात कर रहे हैं ।  इसीलिए यदि हम तेल की खपत घाटा दें तो ही डालर नीचे आएगा ।