Saturday, January 31, 2009

बात इतनी सी है .........

75 वषीय श्री बी. आर. शर्मा ने 10/06/1996 को मुख्य डाकघर, रतलाम (मध्य प्रदेश) से 3000/- का ऋण लिया था. इस ऋण को उन्होंने समय से पूर्व चुका दिया था। इसके बावजूद मुख्य डाक घर ने उनसे 527/- ज्यादा वसूल किए थे। जब शर्मा जी ने पूरे विवरण डाक घर को देने के बाद ज्यादा वसूल किए गए 527/- लौटाने को कहा तो उन्हें न केवल मना किया गया बल्कि अपमानित भी किया गया। शर्मा जी ने जिला उपभोक्ता फोरम में वाद दायर किया। पर वाह रे ! हमारा क़ानून, संविधान ... जिला उपभोक्ता फोरम एक घिसे पिटे रिश्वतखोर सरकारी दफ्तर की तरह साल-दर-साल इस केस की सुनवायी करता रहा। लेकिन, शर्मा जी के जुझारूपन और जीवट के आगे आखिर उसे घुटने टेकने पड़े और दस साल की मैराथन सुनवायी के पश्चात शर्मा जी के पक्ष में 18/12/2008 को फैसला दिया। उस समय जिला उपभोक्ता फोरम की अध्यक्ष सुश्री भारती बघेल थी।

जजों के आयकर रिटर्न की जानकारी देने के सी। आई। सी. के फैसले ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में अपील दायर की है। यह बात समझ से परे है कि जजों को अपनी आय और संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने में क्या परेशानी है। और, अगर हाई कोर्ट के फैसले से, यदि कोई पक्ष सहमत नही होता है, तो मामला सुप्रीम कोर्ट जायेगा ही ..... तो क्या! जज साहब अपने मामले में ख़ुद फैसला करेंगे. इस विषय पर प्रसिद्ध वकील शांती भूषण कहते है कि इन हालात में आवश्यकता का सिद्धांत अपनाया जाता है. जबकि इसी प्रकार के सैंकडो अन्य केसों में सुप्रीम कोर्ट यह कर केस खारिज कर देता है कि आरोपित व्यक्ति स्वयम जज बन कर फैसला नही दे सकता। हालाकि, लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी कह चुके है कि, जजों को भी अपनी आय का ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए. इसपर मुख्य न्यायाधीश का कहना है कि जजों की आय के घोषणा करने के बारे में कोई कानून नही है. तो फ़िर इस देश में इमानदार बने रहने के लिए भी तो कोई कानून नही है. अरे साहेब ! रुकिए .... कहीं इस देश में उच्चतम स्तर पर इसीलिये तो इमानदारों की कमीं हो रही है क्या ?...खैर !.. अपन की मोटी बुद्धी में तो यही एक बात आती है कि .....कानून वो रस्सी है जिससे केवल कमजोर लोगों को बांधा जाता है।
अंत में .... फिलिप्स ब्रुक्स के शब्दों में .... आने वाले जीवन में किसी दिन आप किसी बड़े प्रलोभन से कुश्ती लड़ रहे होंगे या अपने जीवन की किसी भारी विपत्ति के तले काँप रहे होंगे। परन्तु असली संघर्ष यहाँ है, अभी .... अभी यह फैसला किया जा रहा है कि आपके सबसे बड़े दुःख या प्रलोभन के दिन आप बुरी तरह से हारेंगे या शानदार तरीके से जीतेगें. निरंतर और लंबी प्रक्रिया के बिना चरित्र का निर्माण नहीं किया जा सकता.
आपका,
एस। के। वर्मा

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